सम्माननीय प्रधानमन्त्री , श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी, भारत सरकार
मार्फत
महामहिम राजदूत
भारतीय राजदूतावास
लैनचौर, काठमाण्डौं ।
तिथिः ९ अगस्त २०१५
श्रीमान् ,
हम, नेपाल अधीनस्थ तराई(मधेश) के मूल निवासियों के सच्चे प्रतिनिधि और तराई(मधेश) में जारी मुक्ति आन्दोलन के नेता के रुप में आपको भारत–नेपाल “शान्ति एवं मैत्री” सन्धि – १९५० की धारा – ८ का नेपाल में दोहरा मापदण्ड के सन्दर्भ में अवगत कराना अपना कत्र्तव्य समझतें हैं और आपका ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहते हैं कि नेपालियों(पहाडियों) द्वारा भारतीय भू–भाग को सम्मिलित दिखाकर “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” के एकतरफा अभियान से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को गुमराह किया जा रहा हैं और तराई(मधेश) को औपनिवेशिक उत्पीडन में ही रखने की हताशापूर्ण कोशिशें की जा रही हैं ।
इतिहास की नींव पर ही वत्र्तमान का निर्माण होता है । इतिहास का संबंध सिर्पm अतीत से नहीं हैं, उसका संबंध वत्र्तमान और भविष्य से भी है । नेपाल के पाठ्यक्रम और अकादमिक चर्चा के रूप में इतिहास की विषयवस्तुओं के अनुसार नेपाल अधीनस्थ मेची नदी से महाकाली नदी तक का ‘तराई(मधेश)’ किसी शाहवंशी राजा, महाराजा वा नेपाली(पहाडी)का विजित भू–भाग नहीं रहा बल्कि ब्रिटिश स्वार्थ को पूरा करने के सहयोग के बदले नेपाल को हस्तान्तरित किया गया भू–भाग है ।
अतः भारत–नेपाल ‘संधि–१९५०’ की धारा– ८ के आधार पर मेची से लेकर महाकाली तक मधेश के ऊपर रही नेपाली अधीनता पूर्णतः अनाधिकृत और अवैध है । मेची से लेकर महाकाली तक मधेश वस्तुतः स्वतन्त्र भूभाग है । तराई(मधेश) के मूल निवासी(मधेशी) भारत–नेपाल संधि–१९५० की धारा– ८ के अनुसार नेपाल के अधीनस्थ मेची से लेकर महाकाली तक के भू–भाग को ‘स्वतन्त्र तराई(मधेश)’ मानते है जबकि नेपाली(पहाडी) मधेशियों की ऐसी धारणना को नेपाल का विखण्डन मानते हंै ।
दूसरी ओर पहाडियों के अनुसार उसी संधि–१९५० की धारा– ८ के अनुसार भारत के अधीनस्थ तिष्टा नदी से लेकर मेची नदी तक और महाकाली नदी से लेकर सतलज नदी तक का भू–भाग वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल का अंग है, मगर ऐसी मान्यता को भारत का विखण्डन नहीं माना जाता है । २९ जून, १९९७ को “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” के सन्दर्भ में नेपाल के सुप्रसिद्ध इतिहासविद् योगी नरहरिनाथ, अधिवक्ता रामजी विष्ट, अधिवक्ता श्याम प्रसाद ढुंगेल, नेपाली कांगे्रस सुवर्ण के अध्यक्ष प्रह्लाद प्रसाईं हुमागाईं, ‘विशाल नेपाल’ साप्ताहिक के सम्पादक तथा प्रकाशक प्रकाश देवकोटा, राष्ट्रीय जनजागरण पार्टी के अध्यक्ष अशोक लाल श्रेष्ठ, स्वतन्त्र पत्रकार राधेश्याम लेकाली आदि ने मंत्रिपरिषद्, मंत्रिपरिषद् सचिवालय, सम्माननीय प्रधान मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, परराष्ट्र मंत्री, परराष्ट्र मंत्रायल और साथ ही संसद सचिवालय सिंहदरबार को परिवादी बनाकर सर्वोच्च अदालत काठमाण्डू में एक रिट(याचिका) दायर की जिसका दर्ता नं. ३१९३ है ।
इसी प्रकार १९९९ में प्राध्यापक तथा “नेपाल ः टिस्टादेखि सतलजसम्म” के लेखक फणीन्द्र नेपाल, पूर्वी नेपाल के आदिवासी किरांत समुदाय के यमबहादुर कुलुङ, पत्रकार प्रकाश देवकोटा, समाजसेवी बाल कुमार अर्याल जैसे विभिन्न पेशा में संलग्न व्यक्तियों ने नेपाली जनता का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हुए सामूहिक रूप से नेपाल की सर्वोच्च अदालत काठमाण्डू में “वृहत्तर(गे्रटर) नेपाल” सम्बन्धी दूसरी रिट(याचिका) दायर की । इस रिट(याचिका) का दर्ता नं. ३९४० है और इसमें मंत्रीपरिषद् सचिवालय, सम्माननीय प्रधान मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, परराष्ट्र मंत्रायल, भूमि सुधार तथा व्यवस्था मंत्रायल के साथ—साथ रक्षा मंत्रायल सिंहदरबार को भी परिवादी बनाया गया है ।
सर्वोच्च अदालत के माननीय न्यायाधीश हरिप्रसाद शर्मा, दिलीप कुमार पौडेल और खिमराज रेगमी के विशेष इजलास ने नेपाल अधिराज्य का संविधान, १९९०(२०४७) की धारा २३ और ८८ (१) तथा (२) के अनुसार दायर दोनों याचिकाओं को २६ जून, २००३ के अपने फैसले में निरस्त कर दिया । उस फैसले को चुनौती देते हुए निवेदकओं ने सर्वोच्च अदालत के समक्ष पुनरावलोकन के लिए निवेदन नहीं पेश किया ।
गे्रटर नेपाल के उत्साही समर्थक अपने अभियान को व्यापक बनाने के प्रयासों में लगे रहे । उनलोगो ने सर्वसाधारण व्यक्ति से लेकर छोटे–छोटे बालक—बालिकाओं को भी अपने अभियान में आबद्ध करने हेतु ‘ग्रेटर नेपाल सिमानाको खोजीमा’ नामक एक वृत्तचित्र का निर्माण किया । ९ फरवरी, २००८ को नेपाल सरकार के सूचना तथा संचार मन्त्रालय के अन्तर्गत केन्द्रीय चलचित्र जाँच समिति से चलचित्र जाँच प्रमाण–पत्र लेकर वे पूरे नेपाल में इस वृत्तचित्र के प्रदर्शन एवं वितरण में लग गए ।
२०१० में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’ ने भी ‘गे्रटर नेपाल’ के लिए आवाज उठायी । गे्रटर नेपाल के अभियान में एकीकृत नेपाल राष्ट्रीय मोर्चा, नेपाल नेशलिस्ट फ्रन्ट, नेपाल भू–भाग संरक्षण मंच, राष्ट्रीय जागरण पार्टी आदि संगठित रूप से आवद्ध हैं ।
पुस्तक–पुस्तिकाओं, पत्र–पत्रिकाओं, सोशल मीडिया – फेसबुक आदि के माध्यम से अपने अभियान को व्यापक बनाने के प्रयासों में जुटे हैं । २० मई,२०१३ सुबह ९ .२५ बजे झापा जिले के सुमन श्रेष्ठ ने माउन्ट एवरेस्ट के शिखर पर गे्रटर नेपाल का नक्शा फहराया । राजधानी काठमाण्डू के एक समारोह में पहाडियों ने सुमन श्रेष्ठ का अभिनन्दन किया । इस अवसर पर सीमाविद् बुद्धिनारायण श्रेष्ठ ने पर्वतारोही सुमन श्रेष्ठ को माला पहनाया और अवीर लगाया ।
नए संविधान में गे्रटर नेपाल की सीमा और क्षेत्रफल का उल्लेख करने की मांग को लेकर ग्रेटर नेपाल राष्ट्रवादी मोर्चा ने नेपाली नया साल २०७१ बैशाख १ तदानुसार २०१४, अप्रैल १४ से देशव्यापी हस्ताक्षर अभियान चलाया । २० जनवरी, २०१५ को ग्रेटर नेपाल राष्ट्रवादी मोर्चा ने नए संविधान में गे्रटर नेपाल की सीमा और क्षेत्रफल का उल्लेख करने हेतु दबाव बनाने के उद्देश्य से काठमाण्डू के नयाँ बानेश्वर स्थित संविधान सभा भवन के आगे बैनर के साथ प्रदर्शन किया ।
आश्चर्य है कि १९५० की भारत–नेपाल संधि की धारा– ८ के आधार पर गे्रटर नेपाल बनाने के लिए पहाडियों द्वारा संचालित अभियान को संवैधानिक एवं कानूनी करार दिया जाता ह,ै जबकि उसी संधि की धारा– ८ के अनुसार “मुक्त तराई” के लिए मधेशियों द्वारा संगठित अभियान को असंवैधानिक और गैरकानूनी । कहने की जरूरत नही है कि नेपाल में १९५० की शान्ति एवं मैत्री सन्धि की धारा– ८ का बिल्कुल दोहरा मापदण्ड है ।
पूर्व के घटनाक्रम प्रमाणित करते है कि पहाडी शासकों द्वारा बडे सुनियोजित ढग से मधेशियों को मूलभूत नागरिक एंव मानव अधिकारों से वंचित रखा गया है और उनके न्यायपूर्ण आन्दोलन का भीषण नरसंहार कर दमन करने के लिए सभी पहाडी एकजुट रहते हैं ।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने प्रतिवेदन में तराई(मधेश) में नेपाली(पहाडी) अद्र्धसैनिक बलों द्वारा मधेशियों को गैरकानूनी रुप से गिरफ्तार कर उनकी नृशंस हत्याओं को सार्वजनिक किया है । सन् २०११ जनवरी ११ को जेनेवा में संयुक्त राष्ट्रसंघीय मानव अधिकार परिषद के विश्वव्यापी आवधिक समीक्षा (यूपीआर) में नेपाल के प्रतिनिधि तत्कालीन उपप्रधान तथा विदेश मन्त्री सुजाता कोइराला से तराईवासियों की गैरन्यायिक हत्याओं और दोषियों पर कारवाई के बारे में प्रश्न किए गए ।
अन्तर्राष्ट्रीय और नेपाल के मानवाधिकारवादी संस्थाओं के अनुसार भविष्य के होनहार लगभग ३०० मधेशी सपूतों की कायरतापूर्ण गैरन्यायिक हत्याए की जा चुकी हैं और यह क्रम जारी है, करीब डेढ हजार लोग गैरकानूनी बन्दी जीवन बिताने के लिए विवश किए गए हैं ।
ताजा स्थिति यह है कि पहाडी शासकों ने गांव—गांव में पहाडी पुलिस की चौकी, कुछ किलोमीटर पर पहाडी अद्र्धसैनिक सशस्त्र बल का कैम्प और जिले–जिले में पहाडी सैनिकों का बैरेक खडा कर मधेश को हिटलर के कैदखाना मे. परिणत कर दिया गया है और मधेशियों के विरोध की हर आवाज को बडी बेरहमी से कुचला जा रहा है ।
हम, आप से विनम्र आग्रह करते हैं कि आप अपने स्वतन्त्र स्रोत से सच्चाइयों का पत्ता लगाएं कि मधेश में नेपाली शासन के प्रति कितना विरोध एवं नफरत हैं । जब से नेपाली शासकों ने तराई मुक्ति आन्दोलन को बन्दूक की ताकत पर कुचलना शुरु किया, तभी से हमने बाध्यतावश प्रतिरोध की कारवाई का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सम्भाली है ।
अतः हम सम्माननीय प्रधानमन्त्री और भारत सरकार से अपील करते हैं कि वे मधेश को नेपाली औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलाने एवं मधेशियों को स्वयं अपना राजनैतिक भविष्य निर्धारित करने में न्यायपूर्ण सहयोग करें
जयकृष्ण गोइत
संयोजक
अखिल तराई मुक्ति मोर्चा
source :- saptarijagran.org.np
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